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मानो या ना मानो आजादी के पांच सबसे बड़े आंदोलन जिन्होंने देश-अवाम को एक मंच पर ला दिया….

Ashoka Times….15th August 2024

आप मानो या न मानो इस देश में पांच ऐसे आंदोलन हुए थे जिसके बाद अंग्रेजों की जड़े काफी हद तक उखड़ गई थी हालांकि देश की लड़ाई में उन स्वतंत्रता सेनानियों का भी बराबर का हाथ है जिन्होंने अपनी जान हंसते-हंसते कुर्बान कर दी लेकिन जहां अवाम को एक सूत्र में बांधने की बात आती है तो उसके लिए पांच आंदोलन बड़े महत्वपूर्ण माने जाते रहे।

इन आंदोलनों को आज भी याद किया जाता है। सत्य और अहिंसा के प्रति महात्मा गांधी ने जो योगदान दुनिया को सिखाया है वह आज भी सर्वोपरि माना जाता है। दरअसल इस देश को गांधी के द्वारा सिखाए गए रास्ते लोगों को तब समझ आए जब लगे रहो मुन्ना भाई फिल्म सामने आई आधे से ज्यादा लोगों को समझ आया की स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी ने किस तरह से लोगों को अहिंसा का पाठ पढ़ाते हुए अंग्रेजों के सामने डंटे रहने का का मजबूत पाठ पढ़ाया था।

“द स्कॉलर्स होम” की ओर से हिमाचल और पांवटा वासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिकशुभकामनाएं…

चंपारण सत्याग्रह….

यह सत्याग्रह भारत का पहला नागरिक अवज्ञा आंदोलन था जो बिहार के चंपारण जिले से महात्मा गांधी की अगुवाई में 1917 को शुरू हुआ था। इस आंदोलन के माध्यम से गांधी ने लोगों में जन्मे विरोध को सत्याग्रह के माध्यम से लागू करने का पहला प्रयास किया जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आम जनता के अहिंसक प्रतिरोध पर आधारित था। इस आंदोलन में तकरीबन आठ लाख के करीब लोगों ने देशभर में भाग लिया था।

श्री सिद्धिविनायक अस्पताल की ओर से सभी प्रदेशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 

असहयोग आंदोलन….

अप्रैल 1919 में हुए जलियांवाला हत्याकांड के बाद देश में गुस्सा था। अंग्रेजों का अत्याचार बढ़ता जा रहा था। अंग्रोजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ स्वराज की मांग उठनी शुरू हुई। एक अगस्त, 1920 को महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन की घोषणा की गई। छात्रों ने स्कूल-कॉलेज जाना बंद कर दिया। मजदूर हड़ताल पर चले गए। अदालतों में वकील आना बंद हो गए। शहरों से लेकर गांव देहात में आंदोलन का असर दिखाई देने लगा। इस आंदोलन में भारत के 70 लाख से अधिक लोगों ने भाग लेकर अंग्रेजों की जड़े हिला दी थी।

पांवटा साहिब के युवा उद्यमी और रेणुका प्रिंटर्स के संचालक जगदीश तोमर ने प्रदेश और पांवटा साहिब की जनता को स्वतंत्रता दिवस पर शुभकामनाएं दी

1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद असहयोग आंदोलन के दौरान पहली बार हुआ जब अंग्रेजी राज की नींव हिल गई। पूरा आंदोलन अहिंसात्मक तौर पर चल रहा था। इसी बीच फरवरी 1922 में गोरखपुर के चौरी-चौरा में भीड़ ने एक पुलिस थाने पर हमला कर दिया। भीड़ ने थाने में आग लगा दी। इस कांड में कई पुलिसवाले मारे गए। आंदोलन में हुई इस हिंसा से आहत गांधी जी ने आंदोलन वापस ले लिया। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई जागृति प्रदान की। इस आंदोलन में देश के हर कोने में आजादी के लिए लोग जुड़े हालांकि कुछ लोग इस आंदोलन को वापस लेने पर नाराज भी हुए।

नमक सत्याग्रह…..

असहयोग आंदोलन के करीब आठ साल बाद महात्मा गांधी ने एक और आंदोलन किया। इस आंदोलन से अंग्रेज सरकार हिल गई। महात्मा गांधी ने 12 मार्च, 1930 को अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिन का पैदल मार्च निकाला। इस मार्च को दांडी मार्च, नमक सत्याग्रह और दांडी सत्याग्रह के रूप में इतिहास में जगह मिली। इस आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी जिस देश के हिस्से से गुजरे वहां से लाखों लोगों ने भगवान समर्थन किया बल्कि उनके साथ नमक सत्याग्रह आंदोलन को उसके कर्तव्य तक पहुंचाया।

अमरजीत सिंह बिट्टा ने स्वतंत्रता दिवस पर सभी को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि देश पूरी तरह से तिरंगे के रंगों में लवरेज है। तिरंगे का सम्मान हम सबकी जिम्मेदारी है

दरअसल, 1930 में अंग्रेजों ने नमक पर कर लगा दिया था। महात्मा गांधी ने इस कानून के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। इस आंदोलन से गांधी जी नमक पर से ब्रिटिश राज के एकाधिकार को खत्म करना चाहते थे। 12 मार्च को शुरू हुआ ये ऐतिहासिक मार्च 6 अप्रैल 1930 को खत्म हुआ। इस दौरान गांधी जी और उनके साथ चल रहे आंदोलनकारी लोगों से नमक कानून को तोड़ने की मांग करते थे।

कानून भंग करने के बाद सत्याग्रहियों ने अंग्रेजों की लाठियां खाईं लेकिन पीछे नहीं मुड़े। एक साल चले आंदोलन के दौरान कई नेता गिरफ्तार हुए। अंग्रेज इस आंदोलन से घबरा गए। आखिरकार 1931 को गांधी-इरविन के बीच हुए समझौते के बाद आंदोलन वापस हुआ और अंग्रेजों की दमकारी नमक नीति वापस ली गई।

हरिजन आंदोलन…..

महात्मा गांधी जी ने 8 मई 1933 से छुआछूत विरोधी आंदोलन की शुरुआत की थी। इस दौरान महात्मा गांधी ने आत्म-शुद्धि के लिए 21 दिन का उपवास किया। इस उपवास के साथ एक साल लंबे अभियान की शुरुआत हुई। उपवास के दौरान गांधी जी ने कहा था- या तो छुआछूत को जड़ से समाप्त करो या मुझे अपने बीच से हटा दो। इससे पहले 1932 में गांधी जी ने अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग की स्थापना की थी। दलित समुदाय के लिए हरिजन नाम भी महात्मा गांधी ने दिया था। गांधी जी ने ‘हरिजन’ नामक साप्ताहिक पत्र का भी प्रकाशन किया था। इस आंदोलन से देश का दलित वर्ग भी बढ़-चढ़कर आजादी के लिए मैदान में उतरा जिसके कारण देश की आजादी की लड़ाई को एक नई ऊर्जा मिली।

भारत छोड़ो आंदोलन…..

9 अगस्त, 1942 को गांधी जी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की शुरुआत की। मुंबई में हुई रैली में गांधी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया। आंदोलन शुरू होते ही अंग्रेजों ने आंदोलनकारियों पर जमकर कहर ढाया। गांधी समेत कई बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए। इस आंदोलन ने दूसरे विश्व युद्ध में उलझी ब्रिटिश सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी। अंग्रेजों को आंदोलन खत्म करने में एक साल से ज्यादा का समय लग गया। यह भारत की आजादी में सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन था। कहा जाता है कि इस आंदोलन में देश का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा था जहां से अंग्रेजों के खिलाफ सड़कों पर लोग नहीं उतरे अहिंसक तौर पर इस आंदोलन ने अंग्रेजों की जमीन को दलदली कर दिया उनके लिए इस देश में चलना और सांस लेना मुश्किल हो गया। सौ.au.

 

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