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दिल्ली की तरह हिमाचल में भी राज्यपाल और सरकार के बीच बढ़ी तल्खीयां….

राज्यपालों का राजनीतिक हस्तक्षेप से बचना चाहिए….

Ashoka Times….4 January 2025

हिमाचल प्रदेश की राजनीति और विकास दिल्ली की तरह राज्यपाल और कांग्रेस सरकार के बीच तल्खियों के साथ बढ़ता दिखाई दे रहा है।

सरकार के बीच सत्ता की सीमाओं को चित्रित करना बेहद मुश्किल है । पिछले कुछ सालों से राज्यपाल और उपराज्यपालों का सरकारों के साथ सीधा विवाद देखने को मिल रहा है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि राज्यपालों को राजनीतिक हस्तक्षेप से बचकर अपने पद की गरिमा को ऊपर उठाएं रखना चाहिए। लेकिन अक्सर केंद्र सरकार अपने हारे हुए राज्यों में अपने विशेष राज्यपाल या उपराज्यपाल बैठाती है, और उनसे मनचाहे निर्णय करवा कर सरकारों के कार्यों को देरी से या प्रतिबंधित करवा दिया जाता है। जिसका असर आम जनजीवन पर भी पड़ता है।

बता दें कि दिल्ली का विकास भी कई सालों तक ऐसे ही लटका दिया गया था। वही आपको बता दें की राज्यपाल और विधायकी के बीच जो कड़ी होती है वह भी खींचती नजर आ रही है । हिमाचल प्रदेश में राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने सरकार के खिलाफ सख्त लहजे में कहां है कि राजभवन नेताओं के वादे पूरे करने के लिए कतई नहीं है। हालांकि यह समझना जरूरी है कि किए गए नेताओं के वादे कितने जनहित के हैं। अगर जनहित के मुद्दे और वादे जनहित के लिए हैं तो उन्हें पूरा करने में राजभवन की और से किसी प्रकार की कोई भी दखलंदाजी नहीं होनी चाहिए।

बता दे की राजभवन में 2 साल से नौतोड़ संशोधन विधेयक लंबित है । हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को नौतोड़ जमीन देने के मुद्दे को लेकर राजभवन और सरकार के बीच टकराव बढ़ गया है। यह टकराव राजस्व, बागवानी एवं जनजातीय मामलों के मंत्री जगत सिंह नेगी की तरफ से राजभवन पर नौतोड़ जमीन से संबंधित अनुमति नहीं दिए जाने के मुद्दे पर आपत्ति जताए जाने के बाद बढ़ा है।

जमीन देने से रुकेगा सीमावर्ती क्षेत्रों से पलायन : 

जगत सिंह नेगी ने एक बार फिर से राज्यपाल से मुलाकात करके मामले को उठाने की बात कही। उन्होंने कहा कि अगर फिर भी इसकी मंजूरी नहीं मिली तो सड़काें पर शांतिपूर्ण व संवैधानिक तरीके से इसका विरोध दर्ज करवाने के विकल्प पर विचार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इससे संबंधित 20 हजार से ज्यादा आवेदन जनजातीय जिला किन्नौर और लाहौल-स्पीति के अलावा पांगी और भरमौर में लंबित पड़े हैं। उन्होंने कहा कि पात्र लोगों को नौतोड़ जमीन देने से सीमावर्ती क्षेत्रों में लोगों का पलायन भी रुकेगा तथा उनकी आय के साधन भी बढ़ेंगे। उन्होंने कहा कि राज्यपाल संविधान में निहित अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए इसकी अनुमति दे सकते हैं। इसमें जिन लोगों की जमीन 20 बीघा से कम है, उनकी भूमि उपलब्ध करवाई जा सकती है।

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