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इस खतरनाक केमिकल को शरीर से बाहर निकालने का एक ही रास्ता है, खुलकर रोइए…खुशी के लिए रोना है जरूरी…

Ashoka Times…11 JUNE 23 national 

जिंदगी में हंसना जितना जरूरी है उतना ही जरूरी हमारे लिए रोना भी है अगर हंसने से जिंदगी कुछ हसीन होती है तो रोने से कई फायदे आज हम आपको बताएंगे।

आपने लाफिंग क्लब के बारे में तो सुना होगा जहां विशेष तौर पर डिप्रेस्ड लोगों को हंसाया जाता है और उनको डिप्रेशन से बाहर लाने के लिए प्रयास किए जाते हैं तो आपको बता दें कि अब क्राइम क्लब भी खुल रहे हैं आज हम आपको बताएंगे हंसने से ज्यादा जरूरी रोना क्यों होता है।

वैसे तो आंसुओं को दिल की जुबान कहा जाता है। खुशी हो या गम, दोनों में आंसुओं का साथ रहता है। आप माने या ना माने कॉमेडी इतनी सफल नहीं होती, जितनी ट्रेजडी होती है।

आज हम आपको बताएंगे क्या रोने से कैसे दिल हल्का हो जाता है और आपके अंदर का गुबार निकल जाता है

क्या आपने कभी सोचा है कि जवानी की दहलीज पर आते-आते लोगों को बचपन क्यों याद आने लगता है? दौलत-शोहरत के बजाय हम अचानक खेल-खिलौने, रूठने-मनाने की कमी क्यों महसूस करने लगते हैं?

इसका भी जवाब है। नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च के एक सर्वे के मुताबिक कोई भी इंसान बचपन से लेकर 15-16 साल की उम्र तक सबसे ज्यादा खुश रहता है। इसके बाद जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे खुशियां घटती चली जाती हैं।

वेलनेस कोच इसके पीछे आंसुओं को वजह मानते हैं। ज्योति के मुताबिक बचपन में इंसान सबसे ज्यादा रोता है। कोई पसंद की चीज नहीं मिली या किसी ने डांट दिया, बस बच्चे रोने लगते हैं।

लेकिन दूसरी ओर, पसंद की चीजें मिलते ही खिलखिलाहट उनके चेहरे पर वापस खिलने लगती है। उनके मन में किसी तरह का गिला शिकवा नहीं रह जाता है। वो अपना सारा दुख आंसुओं के जरिए बहा देते हैं। कुछ भी जमाकर नहीं रखते।

दूसरी ओर, आप देखेंगे कि 15-16 साल की उम्र में लोगों पर बड़े होने या दिखने का दबाव पड़ने लगता है। यही वो उम्र है जब रोने पर कहा जाता है कि बचकानी हरकत मत करो।’

नतीजतन इस उम्र में लोग रोना बंद कर देते हैं। गम, गुस्सा, तनाव उनके मन में जमा होता जाता है और खुशियां दिनोंदिन कम होती जाती हैं।

खुशी के साथ आंसुओं की अहमियत समझिए…

कुछ साल पहले सूरत में एक अनोखा क्लब खुला। | ये एक ‘क्राइंग क्लब’ है। लोग अपनी जिंदगी में खुशियों के रंग भरने के लिए इस क्लब में रोने आते हैं।बच्चों से लेकर बूढ़े-जवान और महिलाएं बिना किसी झिझक के यहां खुलकर रोते हैं। दुनिया के दूसरे कई देशों में भी इस तरह के ‘क्राइंग क्लब’ खुलने लगे हैं।

वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने वाले लाफ्टर गुरू ने आंसुओं में खोजी खुशी

सूरत के रहने वाले कमलेश मसालावाला लाफ्टर थेरेपिस्ट और साइकोलॉजिस्ट के बतौर जाने जाते थे। फिर वह लाफ्टर गुरू के नाम से मशहूर हुए और उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज हो गया।

उन्हें आइडिया आया कि रुलाकर लोगों को खुश किया जाए। इस तरह सूरत में देश का पहला ‘क्राइंग क्लब’ खुला।

आंसुओं के साथ बह जाते हैं जहरीले केमिकल

हमारे शरीर में ‘कार्टिसोल’ नाम का एक केमिकल नेचुरली बनता रहता है। शरीर में रहकर ये केमिकल डिप्रेशन, एंग्जाइटी और हाइपर टेंशन का कारण बनता है। इस खतरनाक केमिकल को शरीर से बाहर निकालने का एक ही रास्ता है, खुलकर रोइए।

दरअसल आंसुओं के जरिए ये बॉडी से बाहर निकल जाता है। रोने से शरीर में ‘कार्टिसोल की मात्रा कम हो जाती है और इंसान खुश, स्वस्थ और फ्रेश फील करने लगता है।

अब आप जरा ये भी पढ़ें रोने से बेहतर होती है नींद, नष्ट होते हैं आंख के बैक्टीरिया

अमेरिका की ‘नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन’ ने रोने के फायदे पर कई रिसर्च की हैं। इसके मुताबिक रोने से नींद की क्वालिटी और टाइमिंग बेहतर होती है। आपने भी अक्सर देखा होगा कि बच्चे रोने के तुरंत बाद सो जाते हैं।

इसके अलावा इमोशनल टीयर्स ऑक्सीटॉक्सिन और इंडोरफिन्स जैसे हॉर्मोन रिलीज करते हैं, जिनसे हमारी खुशियां बढ़ती हैं और बॉडी रिलैक्स फील करती है। ऑक्सीटॉक्सिन को तो ‘लव हॉर्मोन’ भी कहते हैं। यह भी रोने के बाद ही रिलीज होता है।

इमोशनल टीयर्स से लाइसोजिम नाम का एक केमिकल रिलीज होता है। यह केमिकल एंटीबैक्टीरियल होने की वजह से आंखों को साफ करता है। आंखों में बैक्टीरिया से होने वाले एंथ्रैक्स जैसी खतरनाक बीमारियों से बचाव होता है।

दूसरों के गम में रोती रुदाली

आंसुओं के सहारे खुशियां ढूंढने की परंपरा भारत के लोगों को पहले से पता थी। तभी यहां रोने के लिए भी परम्पराएं बनीं। एक बिरादरी बन गई जिन्हें दुख में पैसे देकर रोने के लिए बुलाया जाता है। दुख की घड़ी यानी अगर किसी की मौत हो जाए तो इस बिरादरी को राजस्थान में बुलाया जाता है।

यह बिरादरी राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में रुदाली नाम से जानी जाती है। इनका काम सामंतों के गम में रोना होता।जब भी गांव के किसी बड़े या प्रभावशाली शख्स की मृत्यु होती; रूदाली अपनी पूरी टोली के साथ उस घर में जाकर रोतीं । रोने के बदले उस परिवार से इन्हें अच्छा-खासा इनाम मिलता।

ऐसी मान्यता थी कि रोना कमजोरी की निशानी है। इसलिए अपनों की मौत पर भी सामंतों को रोने की मनाही थी। उनके लिए ये काम रूदाली करती है।

रोने वाला शख्स कमजोर नहीं, वह ज्यादा मिलनसार और मददगार साबित होते हैं।

आमतौर पर लोग रोने को कमजोरी की निशानी समझ लेते हैं, लेकिन अमेरिका में हुई एक रिसर्च की मानें तो रोना कमजोर होने की निशानी नहीं है।

इस पर रिसर्च करने वाले डॉ. विलियम फ्रे ने लिखा कि रोने वाले लोग ज्यादा सोशल और मददगार होते हैं। ऐसे लोग कम या न रोने वालों की अपेक्षा रिश्ते और दोस्ती बेहतर निभाते हैं। ये अपनी बात के भी पक्के होते हैं।

बार-बार रोना भी डिप्रेशन की निशानी…

आपने रोने के तमाम फायदे जान लिए हैं। समय-समय पर रोते रहना हमारी सेहत और खुशियों को बढ़ा देता है, लेकिन अगर रुलाई बार-बार और बिना किसी वजह के आए तो भी सावधान होने की आवश्यकता है।

डॉक्टर्स बताते हैं कि सप्ताह में 2 से 3 बार इमोशनल होना और रोना नॉर्मल हो सकता है, लेकिन अगर इससे ज्यादा या दिन में कई बार रूलाई आ रही हो तो तुरंत सावधान हो जाइए और अपने डॉक्टर से अवश्य मिले।

सबसे जरूरी है कि किस वक्त आपको रोना आ रहा हूं उस वक्त जगह और स्थिति को देख कर रो लेना चाहिए अगर जगह और स्थिति आप को रोने की इजाजत नहीं दे रही है तो आप उस जगह से तुरंत हट जाए और ऐसी जगह ढूंढ जहां आप हो पाए अगर आप ऐसा करते हैं तो आप अपनी खुशियों को अपनी जिंदगी को हमेशा जिंदा रख पाएंगे।

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