
सवाल क्या राजनीति हो जाएगी साफ़ सुथरी…?

Ashoka Times…23 august 2025
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा 20 अगस्त 2025 को लोकसभा में 130वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया। बिल कहता है कि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई मंत्री अगर लगातार 30 दिन तक जेल में बंद रहता है, और आरोप ऐसा है कि उसमें 5 साल या उससे ज़्यादा की सज़ा हो सकती है, तो उसे पद से हटना पड़ेगा या उसका पद अपने आप समाप्त हो जाएगा।

सरकार का कहना है कि यह संशोधन इसलिए ज़रूरी है क्योंकि अभी संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। बिल में लिखा है कि मंत्री अगर गंभीर अपराधों में जेल चला जाता है तो यह संविधान पर लगे भरोसे को नुकसान पहुँचाता है। इसलिए ज़रूरी है कि उसे पद से हटाने का स्पष्ट प्रावधान हो।
प्रस्तुत संविधान संशोधन विधेयक संविधान के अनुच्छेद 75, अनुच्छेद 164 और अनुच्छेद 239AA में बदलाव करेगा। अनुच्छेद 75 में मौजूदा प्रावधान है कि जो मंत्री छह महीने तक संसद का सदस्य नहीं बनता, वह मंत्री नहीं रह सकता। संविधान संशोधन करके नया उपबंध (5A) जोड़ा जा रहा है जिसमें कहा गया है कि अगर कोई मंत्री 30 दिन तक जेल में है और उस पर पाँच साल या उससे ज़्यादा की सज़ा वाले अपराध का आरोप है, तो प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति उसे हटा देंगे। अगर प्रधानमंत्री सलाह नहीं देंगे तो 31वें दिन से वह मंत्री अपने आप हट जाएगा। यही बात प्रधानमंत्री पर भी लागू होगी। अगर प्रधानमंत्री 30 दिन तक जेल में रहते हैं तो उन्हें इस्तीफ़ा देना होगा, वरना उनका पद अपने आप खत्म हो जाएगा।
अनुच्छेद 164 में मौजूदा प्रावधान यह है कि राज्य सरकार का मंत्री छह महीने तक विधानसभा/विधान परिषद सदस्य न बने तो मंत्री नहीं रह सकता। संविधान संशोधन द्वारा इसमें नया उपबंध (4A) जोड़ा जा रहा है कि अगर कोई मंत्री 30 दिन तक जेल में है और उस पर पाँच साल या उससे ज़्यादा की सज़ा वाले अपराध का आरोप है, तो मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल उसे हटा देंगे। अगर मुख्यमंत्री सलाह नहीं देंगे तो 31वें दिन से उसका पद अपने आप खत्म हो जाएगा। यही नियम मुख्यमंत्री पर भी लागू होगा। अनुच्छेद 239AA द्वारा दिल्ली सरकार के बारे में प्रावधान में भी यही बदलाव किया जा रहा है।
सवाल ये है कि क्या इससे राजनीति साफ़ सुथरी होगी?
पहली नज़र में यह व्यवस्था बड़ी साफ़-सुथरी लगती है। ऐसा लगता है कि अब अपराधी नेता सत्ता का सुख नहीं भोग पाएँगे। जनता के सामने सरकार यह दावा कर सकती है कि वह राजनीति को अपराधमुक्त कर रही है। लेकिन यह संशोधन असल में सत्ता के हितों को ही सुरक्षित करता है।
सबसे पहले यह सवाल कि अपराधी राजनीति में क्यों आता है? राजनीति में अपराधी इसलिए आता है क्योंकि यह व्यवस्था अपराधी को पैदा करती है और फिर उसी को बचाती भी है। नेता इसलिए अपराध करते हैं ताकि पूँजी और सत्ता का गठजोड़ बना रहे। वही पूँजी उन्हें चुनाव जिताती है, वही ताक़त उन्हें अदालत और पुलिस से बचाती है। इस बुनियादी समस्या को यह संशोधन छूता तक नहीं। इसके बजाय यह कहता है कि अगर मंत्री तीस दिन जेल में है तो उसका पद चला जाएगा। लेकिन जेल में जाना और अपराध साबित होना, दोनों अलग बातें हैं। हमारे देश में मुक़दमे सालों-साल चलते हैं। कोई व्यक्ति अपराधी है या नहीं, यह तय होने में दस-दस साल लग जाते हैं। ऐसे में तीस दिन जेल में रहना केवल इतना दिखाता है कि सत्ता पक्ष चाहकर किसी को भी सत्ता से बाहर कर सकता है।
न्याय का बुनियादी सिद्धांत यही है कि हर व्यक्ति तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक उसका दोष सिद्ध न हो जाए। इसे रोमन क़ानून की प्रसिद्ध लैटिन सूक्ति में इस तरह व्यक्त किया गया है—Ei incumbit probatio qui dicit, non qui negat, जिसका अर्थ है कि दोष साबित करने की ज़िम्मेदारी उस पर है जो आरोप लगाता है, न कि उस पर जिस पर आरोप लगाया गया है। इसी से निकला सिद्धांत है ‘presumption of innocence’ यानी निर्दोष मानने की धारणा। अगर इस आधार को छोड़ दिया जाए और केवल आरोप या हिरासत को ही अपराध मान लिया जाए, तो न्याय का पूरा ढाँचा सत्ता के हाथों में खिलौना मात्र बन कर रह जाएगा।
तमाम उदाहरण हमारे सामने हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब नीति मामले में गिरफ़्तार किया गया। महीनों तक जेल में रहे, लेकिन अदालत में अभी तक अपराध साबित नहीं हुआ। अगर यह संशोधन लागू होता, तो तीस दिन पूरे होते ही उनका पद अपने आप चला जाता। इससे लोकतंत्र का क्या भला होता? जनता की चुनी हुई सरकार का क्या होता? यही हाल झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ हुआ। उन्हें भी ईडी ने गिरफ़्तार किया, गंभीर धाराएँ लगाईं, और लंबे समय तक जेल में रखा। अगर यह संशोधन पहले होता, तो उनका पद भी चला जाता। बाद में अगर साबित हो कि आरोप झूठे थे तो क्या खोया हुआ राजनीतिक अधिकार वापस आ जाएगा?
अब सोचिए कि इतनी धीमी न्याय-व्यवस्था के बीच किसी को जेल में डालना क्या न्याय का हिस्सा है या राजनीतिक हथियार है? महाराष्ट्र में नवाब मलिक और अनिल देशमुख जैसे कई मंत्री लंबे समय तक जेल में रहे। बाद में अदालत ने कहा कि सबूत पुख़्ता नहीं हैं। लेकिन इतने दिनों में उनकी राजनीतिक साख और ताक़त को नुकसान पहुँच चुका था। सत्ता में बैठे लोग चाहें, तो विरोधी नेताओं को गंभीर धाराओं में फँसाकर जेल भेज सकते हैं और तीस दिन बाद उनका पद अपने आप चला जाएगा।
लेखक….मनोज अभिज्ञान, सुरेंद्र सिंह चौधरी, विश्व दीपक आदि द्वारा प्रकाशित…भड़ास