दलित नेता केदारनाथ जिंदान को किसी ने नहीं मारा !…. हाई कोर्ट ने बरी किए तीन आरोपी… पढ़ें पूरी दास्तान
Ashoka Times….

हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर में दलित नेता और आरटीआई एक्टिविस्ट केदार सिंह जिंदान हत्याकांड मामले में सभी तीनों आरोपियों को हाई कोर्ट ने बरी कर दिया है । बता दें कि हत्या के मामले में निचली अदालत द्वारा दो को उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी।
प्रदेश हाईकोर्ट ने सिरमौर जिला में बहुचर्चित केदार सिंह जिंदान हत्याकांड के जुर्म में उम्र कैद की सजा भुगत रहे दो दोषीयों को बरी कर दिया है। इस मामले में संलिप्त तीसरे आरोपी को भी हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है। कोर्ट ने अपीलकर्ताओं को तुरंत रिहा करने के आदेश भी दिए हैं। हाईकोर्ट ने विशेष न्यायाधीश सिरमौर द्वारा अपीलकर्ता जय प्रकाश, गोपाल सिंह और कर्म सिंह की अपीलों को स्वीकार करते हुए यह निर्णय सुनाया।
बता दें कि ट्रायल कोर्ट ने दो अपीलकर्ताओं को केदार सिंह जिन्दान की हत्या का दोषी ठहराया था जबकि तीसरे आरोपी को मारपीट करने और साक्ष्य मिटाने के में दोषी ठहराया था। इस निर्णय के खिलाफ आरोपियों ने हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर की थी।

44 गवाहों और साक्ष्यों के आधार पर हुई थी सजा…
मामला 7 सितंबर, 2018 का है। हाईकोर्ट में अधिवक्ता रहे आरटीआई एक्टिविस्ट एवं दलित नेता केदार सिंह जिंदान की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। विशेष न्यायाधीश सिरमौर आरके चौधरी की अदालत ने हाईकोर्ट में अधिवक्ता रहे आरटीआई एक्टिविस्ट एवं दलित नेता केदार सिंह जिंदान की हत्या के दो दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। तीसरे दोषी को तीन साल का कठोर कारावास मिला। अदालत में मामले की पैरवी जिला न्यायवादी बीएन शांडिल ने की। उस वक्त केदार सिंह जिंदान की मौत के दोषी जयप्रकाश को भादंसं की धारा 302 और एससी एसटी एक्ट के तहत आजीवन कारावास एवं एक लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है। जुर्माना अदा न करने की सूरत में एक वर्ष का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा। धारा 201 के तहत पांच वर्ष का कारावास और 25000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई है। हत्या के दूसरे दोषी गोपाल सिंह को भादंसं की धारा 302 और एससी एसटी एक्ट के तहत आजीवन कारावास और 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। धारा 201 के तहत पांच वर्ष की जेल और 25000 रुपये जुर्माना भुगतना होगा। तीसरे दोषी कर्म सिंह को अदालत ने धारा 323 के तहत एक वर्ष कठोर कारावास और एक हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई।
मामला 7 सितंबर, 2018 का है। शिलाई में केदार सिंह जिंदान की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। जिला न्यायवादी ने कोर्ट में बताया था कि केदार सिंह जिंदान, रघुवीर सिंह एवं जगदीश चंद्र बीआरसीसी कार्यालय शिलाई से बाहर निकले तो आरोपी जयप्रकाश, कर्म सिंह एवं गोपाल सड़क के नीचे खड़े थे। जयप्रकाश ने केदार सिंह जिंदान को आवाज लगाई।
केदार सिंह जिंदान गाड़ी के पास पहुंचा तो आरोपी के साथ किसी बात पर बहस हो गई। तीनों आरोपियों जयप्रकाश, गोपाल व कर्म सिंह ने स्कॉर्पियो से डंडे निकालकर केदार सिंह के साथ मारपीट शुरू कर दी। केदार सिंह सड़क पर गिर गया। उठने की कोशिश करते वक्त जयप्रकाश ने लोहे की रॉड से सिर पर चार-पांच बार हमला किया। फिर जयप्रकाश ने गाड़ी स्टार्ट की, जबकि गोपाल ने केदार सिंह को गाड़ी के सामने सड़क पर रखा। जयप्रकाश ने गाड़ी केदार सिंह पर चढ़ा दी। इसके बाद पुलिस ने अदालत में चालान पेश किया। अदालत में 44 गवाहों के बयान एवं साक्ष्यों के आधार पर तीन आरोपियों को यह सजा सुनाई गई थी।
मारे गए बीएसपी नेता केदार सिंह जिंदान की पत्नी हेमलता ने उनकी हत्या की सीबीआई जांच की मांग की थी। 7 सितंबर की सुबह जिंदान पर पहले बेरहमी से हमला किया गया और फिर बकरास गांव की ओर जाने वाली सड़क पर एक स्कॉर्पियो से उन्हें कुचल दिया गया था। यह घटना कथित तौर पर उन लोगों द्वारा की गई थी, जिनका RTI में बड़ा खुलासा जिंदान ने किया था। उसे वक्त उनके धर्मपत्नीने दो मुख्य गवाहों को पुलिससिक्योरिटी देने की बात भी कही थी।
क्या था बड़ा खुलासा…
जून में, जिंदान ने शिमला में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की थी, जहां उन्होंने अपने गांव में बीपीएल प्रमाण पत्र प्रदान करने में अनियमितताओं को उजागर किया था और आरोप लगाया था कि जयप्रकाश (हत्या का मुख्य आरोपी, जिसने जिंदान के ऊपर स्कॉर्पियो भी चलाई थी) ने अपने संपन्न रिश्तेदारों के लिए अवैध रूप से बीपीएल प्रमाण पत्र प्राप्त किए थे और उनके आधार पर उन्हें सरकारी नौकरियां मिल गईं। जिंदान की शिकायत के बाद हत्या के मुख्य आरोपी जयप्रकाश के एक करीबी रिश्तेदार की नौकरी भी चली गई थी।
न्यायालय का मानना है….
न्यायालय प्रक्रिया की मौलिक और बुनियादी धारणा यह है कि कथित अभियुक्त को हमेशा निर्दोष माना जाता है और जब तक आरोप स्पष्ट, ठोस, विश्वसनीय या निर्विवाद साक्ष्य के आधार पर उचित संदेह से परे साबित नहीं हो जाते, तब तक उस पर आरोप लगाने या उसे दंडित करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। दर्शन सीधी स्पष्टबात है पीड़ित को ही साबित करना होता है कि वह सच बोल रहा है और अगर पीड़ित की हत्या हो जाती है तो बोलने वाला कोई शेष नहीं रहता।
सीबीआई से करवाई जाए जांच… बता दे कि उक्त दलित नेता हत्या काण्ड की जांच सीबीआई से करवाई जानी चाहिए। ताकि प्रदेश में रह रहे दलित समाज को विश्वास दिलाया जा सके कि वह अकेला नहीं है।
बता दें कि पूरे देश में जिस वक्त दलित समाज अपने मान सम्मान और खुद को उच्च समाज के बीच खड़ा करने का प्रयास कर रहा है ऐसे समय में हिमाचल हाई कोर्ट का यह निर्णय उनके साहस को कहीं ना कहीं कमजोर जरूर करेगा वही इस पूरे मामले में व्यवस्था चाहे जांच अधिकारियों की हो या न्याय प्रणाली की सवालों के घेरे में जरूर है क्योंकि एक ट्रायल कोर्ट कथित हत्या आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाता है तो हाई कोर्ट उन्हें बरी करने का फैसला सुनता है इस न्याय प्रक्रिया और जांच तथ्यों के बीच की धूरी पूरी तरह अस्थिर और अंधेरे में नजर आ रही है। वहीं दूसरी और न्याय व्यवस्था का केवल उसके सामने खड़े आरोपी की ओर देखना किसी हद तक उस पीड़ित व्यक्ति के साथ अन्याय है जो अपना पक्ष रखने के लिए अदालत और इस दुनिया में है ही नहीं है।
दरअसल चाहे दलित समाज हो या किसी भी वर्ग का कमजोर हिस्सा वह न्याय प्रणाली की प्रक्रिया से गुजर पाने में असहाय और कमजोर महसूस करता है आर्थिक कमजोरी उसे मानसिक तौर पर भी न्याय के दरवाजे से पीछे धकेल देती है। ऐसे में एक कविता के साथ हम अपने समाचार को अभी के लिए विराम देते हैं।
चूल्हा मिट्टी का, मिट्टी तालाब की, तालाब ठाकुर का।
भूख रोटी की, रोटी बाजरे की, बाजरा खेत का खेत ठाकुर का।
बैल ठाकुर का, हल ठाकुर का, हल की मूठ पर हथेली अपनी, फ़सल ठाकुर की।
कुआँ ठाकुर का, पानी ठाकुर का खेत-खलिहान ठाकुर के, गली-मुहल्ले ठाकुर के,
फिर अपना क्या? गाँव? शहर? देश? …ओपी वाल्मीकि