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हिमाचल प्रदेश सूखे की चपेट में…सूखी ठंड बढ़ा सकती है मुसीबत…

देश में बिगड़ती प्रदूषण व्यवस्था से हिमाचल भी प्रभावित ….

Ashoka Times….5 December 2024

बिना बारिश के सूखी ठंड अब लोगों के लिए मुसीबत बनने लगी है, निचले इलाकों में बगैर नमी के पारा शून्य तक पहुंचने लगा है। ऐसे में मजदूर और मेहनतकश लोगों के लिए जिंदगी दोजख होने वाली है।

वहीं दूसरी और पहाड़ों में भी इस बार बारिश नहीं होने के कारण खतरनाक स्तर तक ठंड का प्रकोप देखने को मिल रहा है। मौसम विभाग के अनुसार कल्पा, केलांग, कुकुमसेरी, समदो व ताबो का पारा माइनस डिग्री में चल रहा है। इसके अलावा भूतर व. मनाली का पारा भी लुढ़ककर शून्य की ओर बढ़ रहा है। इन क्षेत्रों में तापमान सामान्य से गिरकर 1 डिग्री तक पहुंच गया है। मंडी, बिलासपुर, कांगड़ा, व ऊना जैसे मैदानी इलाकों और सोलन का पारा भी लुढ़ककर 6 डिग्री से नीचे आ गया है, जो शिमला व धर्मशाला से भी कम है। आने वाले दिनों में भी यदि मौसम की बेरुखी ऐसे रही तो माइनस में जा सकता है।

जलशक्ति विभाग की 150 योजनाएं प्रभावितः

मौसम की मार जलशक्ति विभाग की पेयजल व सिंचाई योजनाओं पर भी पड़ी है, जबकि पर्यटन कारोबार भी प्रभावित हुआ है। आसमान से पानी न बरसने के कारण राज्य में विभिन्न स्थानों पर 150 पेयजल और सिंचाई योजनाएं प्रभावित हुई हैं। 8 दिसंबर से बारिश हुई तो किसान-बागवानों सहित पर्यटन कारोबारियों को भी राहत मिलेगी।

आगे कैसा रहेगा मौसम…63 फीसदी भूमि पर नहीं हुई गेंहूं की बुआई….

कृषि-बागवानी आधारित राज्य पर इस बार बुरी तरह से सूखे की मार पड़ी है। इससे रबी की फसल प्रभावित तो हुई है पेयजल व सिंचाई योजनाओं सहित बागवानी और पर्यटन कारोबार पर भी असर पड़ा है। अक्टूबर व नवंबर के दौरान बारिश न होने से रबी फसल के तौर पर गेहूं की बुआई भी 63% भूमि पर नहीं हो सकी।

पर्यावरण परिवर्तन के प्रमुख कारण ये हैं:

जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा उत्पादन, उद्योग, वाहनों का इस्तेमाल और दूसरी गतिविधियों से ग्रीनहाउस गैसों का अत्यधिक उत्सर्जन हुआ है।

प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन…
इसके साथ ही वनस्पति कटाई, जल संकट, और जलवायु परिवर्तन इसके मुख्य कारण है।

इसके अलावा वायु, जल, और भूमि प्रदूषण.
जनसंख्या वृद्धि, जनसंख्या के बढ़ने से खाद्य, जल, और ऊर्जा संसाधनों का अत्यधिक इस्तेमाल बड़े कारण है।

औद्योगीकरण…

औद्योगीकरण और कोयला, तेल, और गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों का जलना भी प्रकृति और वायु प्रदूषण जल प्रदूषण को प्रभावित कर रहे हैं।

खेती….

खेती, पशुधन की वृद्धि, और बड़े पैमाने पर खेती करना भी बड़ा कारण है क्योंकि खेती के लिए जमीन तैयार करना सीधा जंगलों को प्रभावित करता है।

अत्यधिक मछली पकड़ने से जल प्रदूषण बढ़ता है, पर्यावरण परिवर्तन से न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है, बल्कि मानव जीवन, वन्यजीवन, और वैश्विक अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है. कुल मिलाकर पूरे देश में लगातार बढ़ रहे जलवायु प्रदूषण के कारण हिमाचल प्रदेश पर भी उसका असर देखने को मिल रहा है हालांकि अब भी हिमाचल की जलवायु सबसे बेहतर स्थान पर मानी जाती है।

शिमला के निदेशक डॉ. कुलदीप ने बताया कि प्रदेश में बर्फ गिरने और निचले व मैदानों में 8-9 तारीख को बारिश होने की संभावना है। 10 दिसंबर को लाहौल-स्पीति व चंबा की चोटियों पर फिर से हिमपात हो सकता है।

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