राजधानी सहित पहाड़ों में बेतरतीब भवन निर्माण और सही जल निकासी नहीं होने से दोगुनी हुई आपदा…
Ashoka Times…17 August 23 Himachal Pradesh

हिमाचल प्रदेश में ऐसी आपदा पिछले पांच दशक में भी नहीं देखी गई है इस बार हुई आपदा के पीछे दो सबसे बड़े करण सामने आ रहे हैं जिसमें एक बेतरतीब बनी इमारतें और पहाड़ों में जल निकासी को लेकर बरती गई लापरवाही।
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला इस बार आपदा से अछूती नहीं रही है जिस तेजी के साथ यहां पर बारिश ने कहर मचाया है वह कोई साधारण बात नहीं है पहाड़ों पर होने वाली बारिश को अगर सही रास्ते और निकासी ना मिले तो अधिकतर पानी पहाड़ों में ही समा जाता है ऐसे में उनका धसना तय है इस बार इंसान द्वारा बरती गई लापरवाही का नतीजा है।
शिमला में जिस वक्त अंग्रेजों ने यहां पर अपने भवन निर्माण किए थे उन्होंने उस वक्त एक नीति अपनाई थी पहाड़ों में पानी के बहने के आसपास किसी तरह का कोई भी भवन निर्माण नहीं किया गया इसका एक बड़ा कारण था कि पहाड़ों पर बरसे बादलों के पानी के लिए खुले तौर पर रास्ते बने रहे, इसके अलावा एक भवन से दूसरे भवन के बीच कई मीटर की दूरी रखी गई समतल जगह पर भवन निर्माण किए गए यही वह नियम है जो शिमला राजधानी के अधिकारी और वहां के बसने वाले भूल गए जिसका नतीजा कईं परिवारों को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा है तो वहीं दूसरी और सैकड़ो परिवारों को अपने जीवन भर की जमा पूंजी और भवनों को खोना पड़ा है।

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू क्या बोले…
इमारतों के गिरने पर नीतिगत बदलाव को लेकर सवाल पर सुक्खू ने कहा अतीत में जल निकासी व्यवस्था पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया. अनुचित जल निकासी के कारण, पानी पहाड़ियों में रिसता रहता है, जिससे पहाड़ कमजोर हो जाते हैं और भारी बारिश के बाद ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है. सुक्खू ने कहा कि राज्य में क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे के पुनर्निमाण में अभी एक साल का समय लगेगा। सीएम ने माना कि यह हमारी स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की गलती है. भविष्य में पहाड़ों पर भवन निर्माण को लेकर सख्त और बेहतर नीति बनाई जाएगी।
चाहे तस्वीर मंडी की हो या सिरमौर की या मनाली की एक बात सभी जगह एक जैसी है कि पहाड़ों से बहने वाले पानी के रास्तों को बेहद संकरा कर दिया गया है सिर्फ इतना ही नहीं घरों के बीच दूरी और ऊंचाई की सभी सीमाएं लांघ दी गई पहाड़ों में कईं-कईं मंजिला इमारतें बयां करती है कि पहाड़ों का सांस लेना भी दुश्वार को चला था सबसे बड़ी बात भवन निर्माण के कारण पहाड़ों पर जंगल का सफाया कर दिया गया नतीजा आपदा के रूप में अब सामने आया है।
कैसे हो बचाव…
पहाड़ों में भवन निर्माण और पानी निकासी को लेकर सख्त नियम तय किए जाएं और अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए कि अगर कोई भी नियमों का उल्लंघन कर भवन निर्माण करता है तो किसी भी सूरत पर बख्शा ना जाए तुरंत कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में इस तरह की आपदाओं से कुछ हद तक बचाव हो पाए।
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