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Wednesday, August 13, 2025

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पांचवीं शताब्दी से अपने लिए छोटा सा घर नही बना पाए धूमंतू गुज्जर 

Ashoka time’s…12 june 24 

संगड़ाह। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पिछले कार्यकाल में बेशक भारत की चांद के South Pole पर Landing व दुनिया की 5th Largest Economy बनने को करोड़ों देशवासी बड़ी उपलब्धि मान रहे हों, मगर इसी New India में गुज्जर जैसे कुछ आदिवासी समुदाय आज भी जंगल-जंगल घूम कर अपना जीवन बिता रहे हैं। सूचना एवं प्रौद्योगिकी के इस दौर में जहां कुछ लोग चांद तथा मंगल ग्रह पर घर बनाने का सपना देख रहे हैं, वहीं आधुनिकता की चकाचौंध से कोसों दूर अपने मवेशियों के साथ वनों घूम कर जीवन यापन करने वाले सिरमौरी गुज्जर समुदाय के लोग आज भी अपने लिए छोटा सा घर नही बना सके।

इन दिनों पांवटा दून व जिला के अन्य मैदानी इलाकों से उक्त समुदाय के 300 के करीब परिवार गिरिपार अथवा Greater के जंगलों के Summer Visit पर पंहुचे हैं। गिरिपार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले उपमंडल संगड़ाह, राजगढ़ व शिलाई के पहाड़ी जंगलों में सदियों से मई महीने में उक्त समुदाय के लोग अपनी भैंस, गाय, बकरी व बैल आदि मवेशियों के साथ गर्मियां बिताने पहुंचते हैं। अपने मवेशियों के साथ पैदल गंतव्य तक पहुंचने में इन्हे करीब एक माह का समय लग जाता है। इनके मवेशियों के सड़क से निकलने के दौरान वाहन चालकों को कईं बार जाम की समस्या से जूझना पड़ता है तथा कईं Driver को इन्हे बार-बार कोसते भी सुना जाता है। डॉ रूप कुमार शर्मा व कुछ अन्य हिमाचली इतिहासकारों के अनुसार सिरमौरी गुज्जर छठी शताब्दी में मध्य एशिया से आई हूण जनजाति के वंशज है, जिन्हें पंजाब व मैदानी इलाकों के शासकों ने हिमाचल व कश्मीर के पहाड़ी इलाकों में खदेड़ दिया था। इस समुदाय का Social Media, मीडिया, सियासत, औपचारिक शिक्षा, Internet व Mobile Phone आदि से नजदीक का नाता नहीं है। इसके बावजूद पिछले कुछ अरसे से Gujjar समुदाय के चुनिंदा लोग केवल बातचीत करने के लिए मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने लगे हैं तथा इनके कुछ बच्चे स्कूल भी जाने लगे हैं। गुज्जर समुदाय के अधिकतर परिवारों के पास अपनी जमीन अथवा घर पर नहीं है, हालांकि कुछ परिवारों को सरकार द्वारा पट्टे पर जमीन उपलब्ध करवाई गई है। जिला के औद्योगिक क्षेत्र पांवटा व काला-अंब आदि में गुज्जर समुदाय के काफी साधन संपन्न परिवार भी है, मगर सरकार व जिला की स्वयंसेवी संस्थाओं की तरह अपनी बिरादरी से भी घुमंतू गुज्जरों के अनुसार उन्हें कोई मदद अब तक नहीं मिली। खुद को मुस्लिम व आदिवासी हितैषी बताने वाले राजनीतिक दल हालांकि इनके पास Vote मांगने आते हैं मगर इन्हें 2 गज जमीन देने की फरियाद चुनाव के बाद भूल जाते हैं। इस समुदाय के साधन संपन्न व Political Parties तथा सामाजिक संगठनों से संबंध रखने वाले लोगों द्वारा पिछले 2 साल से गिरिपार को जनजातीय दर्जे का विरोध किया जा रहा है और इसके खिलाफ अदालत में याचिका भी दायर की गई है। कुछ कुछ दशक पहले तक अनाज के बदले दूध देने वाले उक्त समुदाय के लोग अब अपने मवेशियों का दूध व खोया तथा घी आदि दुग्ध उत्पाद बेच कर अपना जीवन यापन करते हैं। उक्त समुदाय के अधिकतर लोग खुद को मुस्लिम मानते है, हालांकि नमाज, रोजे व कुरान आदि के लिए इन्हें कभी वक्त न मिला। सिरमौर में यह एकमात्र घुमंतू समुदाय है तथा इनकी जनसंख्या मात्र दो हजार के करीब है। इनके बच्चों को लिए SSA के तहत चलने वाले विशेष Mobile School मे से कुछ बंद हो चुके है। जंगलों में परिवार के साथ जिंदगी बिताने के दौरान न केवल उक्त समुदाय के लोगों के अनुसार उन्हें न केवल प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है, बल्कि कईं बार जंगली जानवरों, स्थानीय लोगों व वन कर्मचारियों की बेरुखी का भी सामना करना पड़ता है। पहाड़ों का गृष्मकालीन प्रवास पूरा होने व सितंबर में चूड़धार में Snowfall के बाद उक्त घुमंतू समुदाय अपने मवेशियों के साथ मैदानी इलाकों के अगले छह माह के प्रवास पर निकल जाएंगे और इसी तरह इनका पूरा जीवन बीत जाता है।

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