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शिलाई क्षेत्र में क्यों करते हैं लोग सामान ढोने वाली गाड़ियों में सफर…पढ़ें क्या है मजबूरी…

Ashoka Times….9 जनवरी 24 (शिलाई) हिमाचल प्रदेश 

जिला सिरमौर में हुए सड़क हादसे ने पूरी तरह से दर्जनों परिवारों को झकझोर कर रख दिया है। आज भी जिला सिरमौर के शिलाई क्षेत्र में आवाजाही के लिए माल ढोने वाले वाहनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां के लोग मजबूरन अपनी जान जोखिम में डालकर सफर तय करते हैं।

आखिर पहाड़ में दुर्गम क्षेत्र में लोग सफर करने के लिए जान जोखिम में क्यों डालते हैं इसका सबसे बड़ा कारण है कि आज भी शिलाई क्षेत्र में दर्जनों ऐसे छोटे रास्ते हैं जहां पर बस या साधारण गाडियां नहीं पहुंच पाती, मूलभूत यातायात की सुविधा भी कई जगह उपलब्ध नहीं है बल्कि ऐसे दुर्गम क्षेत्रों से केवल और केवल पिकअप या बोलेरो कैंपर जैसी गाड़ियों से ही लोग जान जोखिम में डालकर सफर करने को मजबूर है। दरअसल इन क्षेत्रों में जिन लोगों के पास पिकअप या बोलोरो कैंपर जैसी भारी और पहाड़ों में कामयाब गाड़ी है उनके चालकों के साथ लोग समय-समय संपर्क कर अपना सफर तय करते हैं वह आने जाने के लिए उनसे संपर्क कर एक साथ अपना सफर तय करते हैं और जब कोई ऐसा हादसा होता है तो दर्जनों परिवारों को उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है।

जिला सिरमौर के शिलाई क्षेत्र में भले ही विकास की बयार बह रही है लेकिन आज कईं दर्जन दुर्गम क्षेत्रों में बसे गांव के लोग मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए जान जोखिम में डालते हैं। आज मंगलवार को जो सुबह बोलोरो कैंपर गिरने से उसमें दो लोगों की मौत और 17 गंभीर रूप से घायल हुए कुछ का इलाज शिलाई अस्पताल में चल रहा है तो कुछ को पांवटा साहिब पहुंचाया गया यहां से भी कुछ लोगों को रेफर किया जा रहा है।

ऐसा नहीं है कि जिला सिरमौर के शिलाई क्षेत्र में यह पहला हादसा है इससे पहले भी कई हादसे हुए हैं बोलोरो कैंपर और पिकअप जैसी गाड़ियों से सफर करते वक्त दर्जनों लोगों ने अपनी जान गंवाई है बेहद दुर्गम क्षेत्रों में यातायात के लिए कभी कोई प्लानिंग नहीं की गई मिनी बस या इस तरह की सुविधाओं को गांव तक सीधे तौर पर नहीं जोड़ा जा सकता हालांकि नेशनल हाईवे बनने से कुछ लिंक रोड सीधे जरूर जुड़े लेकिन आज भी एक बड़ा तबका बिना रास्तों के ही जीवन सफर तय कर रहा है।

जो भी हो जिला सिरमौर में आज भी ऐसे सैंकड़ों गांव हैं जहां यातायात व्यवस्था काफ़ी नाजुक हैं वहां सफ़र तय करने के लिए माल ढोने वाले वाहनों का ही सहारा रहता है। हमें लगता है सरकार और उनमें राजनीतिक नुमाइंदों को ऐसे सैंकड़ों गांवों के लिए मूल भूत यातायात व्यवस्था पर गहनता से विचार करना चाहिए। अन्यथा ऐसे हादसों पर रोक लगाना मुश्किल होगा।

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