पढ़िए किस तरह से 3 सालों में 3 गुना बढ़ा अस्पतालों का बजट…
Ashoka Times…30 जनवरी
फरवरी माह में देश का बजट पेश होने वाला है हर कोई उम्मीद लगाए बैठा है कि उसके लिए बजट में कुछ ना कुछ प्रावधान जरूर होगा लेकिन अगर भारत की बात करें तो आज यहां पर माता-पिता बनना आम आदमी के लिए बेहद मुश्किल भरा हो गया है बीते 3 वर्षों में मां बनना लगभग 3 गुना अधिक महंगा हो गया है प्रेगनेंसी से डिलीवरी तक का खर्चा इन 3 वर्षों 90 हजार से बढ़कर डेढ़ लाख को पार कर चुका है।
भारत जैसे देश में 9 महीने की प्रेगनेंसी अब धीरे-धीरे आम नागरिक के बस से बाहर होती जा रही है यहां पर लग्जरी होटलों से महंगे अस्पतालों के खर्चे बढ़ गए हैं अगर हम बात करें तो 9 महीनों में लगभग 7 से 8 बार अल्ट्रासाउंड और कई महंगे टेस्ट करवाने पड़ते हैं जिन का खर्चा आम नागरिकों वहन करना पड़ता है।
सिर्फ अल्ट्रासाउंड और कलर डॉप्लर का ही खर्चा 10,000 के पार चला जाता है।
इसके अलावा 9 महीने में अगर हम मेडिसिन, सप्लीमेंट, इंजेक्शन, दवाएं इनकी बात करें तो तकरीबन 30 से 40,000 का खर्चा आ जाता है । 9 महीने में स्पेशल न्यूट्रिशंस का खर्चा लगभग 25 से 30000 चला जाता है।
इसमें भी अगर हम c-section की बात करें यानी सर्जरी से अगर बच्चे का जन्म होता है तो लगभग ₹50,000 खर्च आता है जिसमें सिजेरियन आप्रेशन करने वाले डॉक्टर की फीस, मैडिसन खर्च, अस्पताल में रहने का खर्चा सब शामिल है।
पहले और आज के भारत में क्या है फर्क….
नौ महीने की प्रेग्नेंसी आसान नहीं होती। 30 साल पहले तक भारत में 74% प्रसव घर पर ही होते थे। तब हेल्थ केयर सुविधाएं नहीं होने से 1000 बच्चों के जन्म पर 80 बच्चों की मौत हो जाती थी। जबकि एक लाख बच्चों के जन्म पर 437 महिलाएं दम तोड़ देतीं।
जैसे-जैसे हेल्थ केयर सुविधाएं बढ़ीं, लोगों में जागरूकता आई; अस्पतालों में बच्चों की जन्मदर बढ़ी। ‘नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5’ के अनुसार, अब देश में 92% डिलीवरी अस्पतालों में हो रही है। इनमें से लगभग 40% डिलीवरी प्राइवेट अस्पतालों में होती है। देखना ये है कि पिछले पांच सालों में मां बनना कितना महंगा हो गया। बजट 2023 2024 में फैमिली शुरू करने या दूसरा बेबी प्लान करने के लिए दंपती को कितना कुछ सोचना पड़ेगा।
भारत में क्या है अस्पतालों की स्थिति…
आज भी भारत के सरकारी अस्पताल सबसे अधिक डॉक्टर नर्स और अन्य स्टाफ की कमी के कारण जूझ रहे हैं स्टाफ पूरा नहीं होने के कारण बेहद दबाव में काम किया जा रहा है साधारण बात करें तो प्रतिदिन एक डॉक्टर 30 से 40 मरीजों को ही देखने की योग्यता रखता है लेकिन अस्पतालों में हर रोज 300 से अधिक मरीजों तक डॉक्टर्स को देखना पड़ रहा है ।
नेशनल हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक देश की 40% से अधिक आबादी जो कि मिडिल और लो क्लास के लोग हैं उन्हें निजी अस्पतालों में जाना पड़ रहा है । देश के डाटा के मुताबिक निजी अस्पतालों में आधी से अधिक डिलीवरी सिजेरियन हो रही है अगर हम बाहरी देशों की बात करें तो बाहरी देशों में सिजेरियन 10 से 15% ही होती है।
GST के चलते होटल के बेड से महंगा प्राइवेट अस्पतालों का बेड…
बता दें कि देश की सरकार ने जब से जीएसटी लागू किया है इसमें मेडिकल फैसिलिटी और सर्जिकल फर्नीचर पर 12 से 18% जीएसटी लगाया गया है यह भी एक बड़ा कारण है कि निजी अस्पतालों को इलाज महंगा करना पड़ रहा है इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के लोगों द्वारा सरकार से मेडिकल फैसिलिटी पर जीएसटी हटाने की मांग की गई है ताकि इलाज संस्था किया जा सके । बता दें कि देश के नागरिक को एक्स-रे अल्ट्रासाउंड पर ही 12% तक टैक्स देना पड़ रहा है। इसके अलावा सर्जरी इंस्ट्रूमेंट और मशीनें लगभग 18% जीएसटी के साथ बेची जा रही है जिनके कारण खर्च और अधिक बढ़ गया है।
फरवरी में जो इस बार देश का बजट पेश किया जाना है देश की प्रगति के साथ-साथ मेडिसिन और मेडिकल क्षेत्र में 2% के बजाय कम से कम 10% बजट बढ़ाना होगा ताकि इस देश के आम नागरिक को सस्ता या मुफ्त इलाज मिल सके।